पिछले दिनों कर्नाटक हाईकोर्ट ने ये बोलते हुए हुए शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने पर रोक लगा दी कि हिजाब इस्लामी परम्परा का हिस्सा नहीं है। फैसले के बाद मुख्य न्यायधीश को जान से मारने की धमकी दी गई। सवाल खड़ा होता है कि जब भी चीज़ें इन कट्टरपंथियों के मुताबिक नहीं होती तो वो सीधे मरने-मारने पर उतारू क्यों हो जाते हैं।
फ्रांस में कोई मैगजीन कोई कार्टून बनाती है तो आप उसके पूरे स्टाफ की हत्या कर देते हैं। कोई तस्लीमा नसरीन किताब लिखती है तो उसे देश छोड़ना पड़ जाता है। कोई सलमान रशदी मज़हब पर टीका करता है तो उसके खिलाफ फतवा जारी हो जाता है। मतलब, या तो तुम मेरी बात मानो, नहीं तो मरने के लिए तैयार रहो। बीच में संवाद, सुधार या माफी की गुंजाइश ही नहीं!
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